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कविता

महामहिम

श्रीकांत वर्मा


महामहिम!
चोर दरवाजे से निकल चलिए!
बाहर
हत्यारे हैं!

 

बहुक्म आप
खोल दिए मैंने
जेल के दरवाजे,
तोड़ दिया था
करोड़ वर्षों का सन्नाटा

 

महामहिम!
डरिए! निकल चलिए!
किसी की आँखों में
हया नहीं
ईश्वर का भय नहीं
कोई नहीं कहेगा
"धन्यवाद"!

 

सब के हाथों में
कानून की किताब है
हाथ हिला पूछते हैं,
किसने लिखी थी
यह कानून की किताब?

 


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